सोमवार, 2 सितंबर 2013

अघोर चतुर्दशी : ३ सितम्बर

शाबर मन्त्रों के अधिपति भगवान शिव हैं. उनका सबसे प्रचंड स्वरुप है अघोर शिव. उनकी साधना से साधना का मार्ग सहज और सरल हो जाता है :-




॥ ऊं अघोरेश्वराय महाकालाय नमः ॥

  • १,२५,००० मंत्र का जाप .
  • दिगंबर/नग्न  अवस्था में जाप करें
  • अघोरी साधक श्मशान की चिताभस्म का पूरे शारीर पर लेप करके जाप करते हैं. 
  • लेकिन गृहस्थ साधकों के लिए  चिताभस्म निषिद्ध है. वे इसका उपयोग नहीं  करें. यह गम्भीर  नुकसान कर सकता है.
  • गृहस्थ साधक अपने शरीर पर गोबर के कंडे  की राख से त्रिपुंड बनाएं . यदि सम्भव हो तो पूरे शरीर पर लगाएं.
  • रुद्राक्ष पहने तथा रुद्राक्ष की माला से जाप करें.
  • जिस माला से आप जाप कर रहे हैं उसपर जप से पहले भस्म अर्पित करें.
  • जाप होने के बाद माला गले में धारण करें.
  • इस माला को किसी को स्पर्श न करने दें.
  • आगे की साधनाएँ करते समय इस माला को गले में धारण किये रहें तो यह सुरक्षा चक्र  का काम करेगा.
  • जाप के बाद थोड़ी देर साधना स्थल पर शांत होकर बैठें.
  • भावना करें की., "जाप से जो उर्जा उठी है वह मेरे शारीर और आत्मा में समाहित हो रही है, मै शिवमय हो रहा हूँ "
  • जाप से उठने के बाद स्नान अवश्य करें. यह मन्त्र शारीर को बहुत गर्म कर देता है, यदि संभव हो तो ठन्डे पानी से ही स्नान करें.
  • जाप के बाद स्नान करने के बाद सामान्य कार्य कर सकते हैं.
  • जाप से प्रबल ऊर्जा उठेगी, किसी पर क्रोधित होकर या स्त्री सम्बन्ध से यह उर्जा विसर्जित हो जायेगी . इसलिए पूरे साधना काल में क्रोध और काम से बचकर रहें. शिव कृपा होगी.


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