शाबर मन्त्रों के अधिपति भगवान शिव हैं. उनका सबसे प्रचंड स्वरुप है अघोर शिव. उनकी साधना से साधना का मार्ग सहज और सरल हो जाता है :-
॥ ऊं अघोरेश्वराय महाकालाय नमः ॥
- १,२५,००० मंत्र का जाप .
- दिगंबर/नग्न अवस्था में जाप करें
- अघोरी साधक श्मशान की चिताभस्म का पूरे शारीर पर लेप करके जाप करते हैं.
- लेकिन गृहस्थ साधकों के लिए चिताभस्म निषिद्ध है. वे इसका उपयोग नहीं करें. यह गम्भीर नुकसान कर सकता है.
- गृहस्थ साधक अपने शरीर पर गोबर के कंडे की राख से त्रिपुंड बनाएं . यदि सम्भव हो तो पूरे शरीर पर लगाएं.
- रुद्राक्ष पहने तथा रुद्राक्ष की माला से जाप करें.
- जिस माला से आप जाप कर रहे हैं उसपर जप से पहले भस्म अर्पित करें.
- जाप होने के बाद माला गले में धारण करें.
- इस माला को किसी को स्पर्श न करने दें.
- आगे की साधनाएँ करते समय इस माला को गले में धारण किये रहें तो यह सुरक्षा चक्र का काम करेगा.
- जाप के बाद थोड़ी देर साधना स्थल पर शांत होकर बैठें.
- भावना करें की., "जाप से जो उर्जा उठी है वह मेरे शारीर और आत्मा में समाहित हो रही है, मै शिवमय हो रहा हूँ "
- जाप से उठने के बाद स्नान अवश्य करें. यह मन्त्र शारीर को बहुत गर्म कर देता है, यदि संभव हो तो ठन्डे पानी से ही स्नान करें.
- जाप के बाद स्नान करने के बाद सामान्य कार्य कर सकते हैं.
- जाप से प्रबल ऊर्जा उठेगी, किसी पर क्रोधित होकर या स्त्री सम्बन्ध से यह उर्जा विसर्जित हो जायेगी . इसलिए पूरे साधना काल में क्रोध और काम से बचकर रहें. शिव कृपा होगी.
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