सप्तम ज्योति धूमावती प्रगटी
।। धूमावती ।।
ॐ पाताल निरंजन निराकार, आकाश मण्डल धुन्धुकार, आकाश दिशा से
कौन आये, कौन रथ कौन असवार, आकाश दिशा
से धूमावन्ती आई, काक ध्वजा का रथ अस्वार आई थरै आकाश,
विधवा रुप लम्बे हाथ, लम्बी नाक कुटिल नेत्र
दुष्टा स्वभाव, डमरु बाजे भद्रकाली, क्लेश
कलह कालरात्रि । डंका डंकनी काल किट किटा हास्य करी । जीव रक्षन्ते जीव भक्षन्ते
जाजा जीया आकाश तेरा होये । धूमावन्तीपुरी में वास, न होती
देवी न देव तहा न होती पूजा न पाती तहा न होती जात न जाती तब आये श्रीशम्भुजती
गुरु गोरखनाथ आप भयी अतीत ।
ॐ धूं धूं धूमावती स्वाहा ।
1.
महाविद्या धूमावती का
शाबर मंत्र है ।
2.
ग्रहण काल मे यथा संभव जाप करें ।
3.
सबसे पहले यदि गुरु बनाया हो तो उनका दिया हुआ मंत्र 21 बार जपें ।
4.
यदि गुरु न बनाया हो तो निम्नलिखित गुरु मंत्र 21 बार जपें ।...
॥
ॐ परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः ॥
5.
कम से कम 33 बार जाप करना चाहिए । न कर सकें तो
जितना आप कर सकते हैं उतना करें ।
6. धूमावती साधना से सभी प्रकार की तंत्र बाधा से मुक्ति प्राप्त
होती है ।
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