षष्टम ज्योति भैरवी प्रगटी ।
।। त्रिपुर भैरवी ।।
ॐ सती भैरवी भैरो काल यम जाने यम भूपाल तीन नेत्र तारा त्रिकुटा, गले में माला मुण्डन
की । अभय मुद्रा पीये रुधिर नाशवन्ती ! काला खप्पर हाथ खंजर, कालापीर धर्म धूप खेवन्ते वासना गई सातवें पाताल, सातवें
पाताल मध्ये परम-तत्त्व परम-तत्त्व में जोत, जोत में परम जोत,
परम जोत में भई उत्पन्न काल-भैरवी, त्रिपुर-भैरवी,
सम्पत्त-प्रदा-भैरवी, कौलेश-भैरवी, सिद्धा-भैरवी, विध्वंसिनि-भैरवी, चैतन्य-भैरवी, कामेश्वरी-भैरवी, षटकुटा-भैरवी, नित्या-भैरवी । जपा अजपा गोरक्ष
जपन्ती यही मन्त्र मत्स्येन्द्रनाथजी को सदा शिव ने कहायी । ऋद्ध फूरो सिद्ध फूरो
सत श्रीशम्भुजती गुरु गोरखनाथजी अनन्त कोट सिद्धा ले उतरेगी काल के पार, भैरवी भैरवी खड़ी जिन शीश पर, दूर हटे काल जंजाल
भैरवी मन्त्र बैकुण्ठ वासा । अमर लोक में हुवा निवासा ।
ॐ ह्सैं ह्स्क्ल्रीं ह्स्त्रौः
1.
महाविद्या त्रिपुरभैरवी का शाबर मंत्र है ।
2.
नवरात्रि मे यथा संभव जाप करें ।
3.
सबसे पहले यदि गुरु बनाया हो तो उनका दिया हुआ मंत्र 21 बार जपें ।
4.
यदि गुरु न बनाया हो तो निम्नलिखित गुरु मंत्र 21 बार जपें ।...
॥
ॐ परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः ॥
5.
कम से कम 1008 जाप करना चाहिए । न कर सकें तो
जितना आप कर सकते हैं उतना करें ।
6. त्रिपुरभैरवी साधना से सभी प्रकार की तंत्र बाधा से मुक्ति प्राप्त
होती है ।
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